भगवान परशुराम के जन्म की कथा
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नमस्कार दोस्तों
भगवान परशुराम की जन्म की कथा बहुत ही रोचक है जिसका वर्णन विष्णु पुराण के ४ अंश के ७ अध्याय में किया गया है असल में परशुराम के जन्म की कथा इनके दादाजी के समय से आरंभ हो जाती है । परशुरामजी के नाम था महर्षि ऋचिक जोकि अत्यंत क्रोधी स्वभाव के थे साथ ही उम्र भी काफी हो गई थी
लेकिन अभी तक उन्होंने विवाह नहीं किया था एक बार जब ऋषि के मन में आया कि उन्हें भी अब विवाह कर लेना चाहिए तो पहुंच गए राजा गाधि के पास और उनसे उनकी कन्या मांग बैठे राजा ने अति क्रोधी और वृद्ध ब्राम्हण को कन्या न देने की इच्छा से महर्षि से कन्या के बदले चंद्रमा के समान कांतिमान और हवा के समान गतिवान हो ऐसे 100 श्यामवर्ण वाले घोड़े मांग लिए जो कि असंभव था।
किंतु महर्षि ऋचिक ने अश्वतीर्थ से उत्पन्न हुए वैसे ही 100 घोड़े वरुण से लेकर राजा गाधि को दे दिए अब राजा ना चाहते हुए भी महर्षि ऋचीक से अपनी कन्या का विवाह कराना पड़ा। विवाह के कुछ समय उपरांत ऋषि को लगा कि विवाह को तो काफी समय हो गया है। अब एक संतान भी होनी चाहिए
अतः उन्होंने संतान की कामना से अपनी पत्नी सत्यवती के लिए यज्ञीय खीर तैयार की तथा क्षत्रिय श्रेष्ठ पुत्र की उत्पत्ति के लिए एक और यज्ञीय खीर सत्यवती की माता के लिए भी तैयार की और दोनों यज्ञीय लेकर सत्यवती के पास गए और कहा की इसका समुचित उपयोग करना ऐसा कहकर वे वन वन मे चले गए।
अब सत्यवती खीर लेकर अपनी माता के पास गई और सारा वृतांत सुनाया जैसा महर्षि ऋचिक ने कहा था यह सुनकर सत्यवती की माता बोली की पुत्री सभी लोग अपने ही पुत्र को गुणवान और शक्तिशाली बनाना चाहते है अपनी पत्नी के भाई मे कोई विशेष रूचि नहीं रखता वैसा ही तेरे पति ने भी सोचा होगा और तुम्हारी यज्ञीय खीर को अधिक प्रभावशाली बनाया होगा ताकि तुम्हारा पुत्र सर्व श्रेष्ठ हो अतः तुम मेरी खीर का पान करो और मै तुम्हारी खीर का पान करुँगी ।
क्योंकि मेरे पुत्र को संपूर्ण पृथ्वी का पालन करना है और तुम्हारे ब्राम्हण पुत्र को तो बल वीर्य और संपत्ति से लेना देना तो होता नहीं ऐसी पक्ष पात पूर्ण बात सुनकर सत्यवती बहुत दुखी हुई और ना चाहते हुए भी अपनी खीर अपनी माता को दे दी और माता वाली खीर खुद पी गई ।
थोड़े समय बाद ज़ब महर्षि ऋचिक वन से लौटे और सत्यवती को देखा तो क्रोधित होकर बोले की रे पापी ऐसा कौनसा कार्य किया। जिससे तेरा शरीर इतना भयंकर प्रतीत होता है। अवश्य ही तूने अपनी माता के लिए तैयार खीर का पान किया है। जो ठीक नहीं है क्योंकि उसमे मैंने अपने सम्पूर्ण भोग विलास वीरता और बल की संपत्ति का समावेश किया था।तथा तुम्हारी खीर में शांति ज्ञान और तितिक्षा का आरोपण किया था ।
उनका विपरीत उपयोग से तेरा अति भयानक अस्त्र शस्त्रधारी पालन कर्म मे तत्पर क्षत्रिय के समान आचरण वाला पुत्र उत्पन्न होगा और तुम्हारी माता को ब्रह्मण आचरण युक्त पुत्र उत्पन्न होगा। यह सुनते ही सत्यवती महर्षि ऋचिक के पैरो पर गिर पड़ी और क्षमा मांगते हुये । अपने और माता के मध्य मे जो बातें हुई थीं । उसका सारा वृतांत सुनाया।
और बोली कि हे भगवन अज्ञानता वश मैंने ऐसा कर्म किया अतः प्रसन्न होइए और कुछ ऐसा उपाय करें जिससे मेरा पुत्र ऐसे स्वाभाव का ना हो भले मेरा पौत्र (पोता ) उस स्वाभाव का हो। यह सब सुनकर महर्षि बड़ा आश्चर्य हुआ और बोले कि हे सत्यवती इसमें तेरा कोई दोष नहीं लेकिन श्राप तो भुगतना पड़ेगा चाहे हमारे पौत्र को ही भुगतना पड़े ।
जमदग्नि ने इक्ष्वाकु कुल कि रेणु की कन्या से विवाह किया। और जमदग्नि से सम्पूर्ण क्षत्रियों का विनाश करने वाले भगवान परशुराम उत्पन्न हुए. जोकि भगवान नारायण के अंशावतार थे। जो जन्म से ब्राम्हण
और कर्म से क्षत्रिय हुए .
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