शिवजी ने किया था स्तनपान इस देवी का.
नमस्कार दोस्तों
आज जो कथा लेकर आया हूँ इसका वर्णन लिंग पुराण के हिन्दी PDF के पृष्ठ संख्या ३१० से ३१२ के मध्य मिलता है । कथानुसार....
दारुक नामक एक महाबलशाली असुर हुआ जिसने तपस्या के माध्यम से वरदान प्राप्त किया और उसी के प्रभाव से वह देवताओं और ऋषि मुनियो को प्रलय की अग्नि के सामान कष्ट देने लगा। तब दारूक के द्वारा पीड़ित देवता, ब्राम्हण, ईशान, कुमार, इंद्र, यम, सहित विष्णु आदि की शरण में गये।और कि " हे महाराज यह दैत्य स्त्री के द्वारा वध योग्य हैं।
तथा सभी देवता स्त्री का रूप धारण करके लड़ने गये। लेकिन दैत्य दारुक ने उन सभी को प्रताड़ित करके वापस भेज दिया। तब देवता पुनः ब्रम्हा जी के पास गये और सारी व्यथा सुनाई । तब ब्रम्हा जी सभी देवताओं को लेकर भगवान शिव जी के पास गये और प्रणाम करके बोले कि " हे देवेश हमारी समस्या का का समाधान करें।
इस दैत्य का वध स्त्री के द्वारा ही संभव हैं ऐसे में आप हमारी रक्षा करें इस भयंकर दैत्य से। यह सुनकर भगवान शिव हॅसते हुए माता पार्वती से बोले कि "है देवी कल्याणी जगत के हित के लिए और स्त्री के द्वारा वध योग्य दारुक को मारने के लिए मैं आपसे प्रार्थना करता हूं। ऐसा सुनकर देवी पार्वती एक अंश से, महेश्वर के शरीर में प्रवेश कर गई।
इस भेद को इन्द्र आदि सहित ब्रम्हा भी नहीं समझ पाए। क्योंकि उन सब को देवी पार्वती शिव जी के साथ पूर्ववत ही बैठी दिख रही थी । यह इसलिए हुए क्योंकि वे सभी देव देवी की माया से मोहित थे । देवी पार्वती ने शिव के शरीर में प्रवेश करके उनके कंठ में स्थित विष से अपना शरीर धारण किया। जो कि काले वर्ण वाला हुआ। तब भगवान शिव ने उन्हें अपने तीसरे नेत्र से बाहर उत्पन्न किया।
उस समय दैत्यों के नाश के लिए, और भगवती भोलेश्वर कि तुष्टिकरण के लिए। विष से काले कंठ वाली काली को देखकर देवता और सिद्ध लोग डर के मारे भागने लगे। उस काली के ललाट में तीसरा नेत्र, मस्तक पर चंद्र रेखा, कंठ में कराल विष का चिन्ह, और हाथ में त्रिशूल लिए हुए, नाना प्रकार के आभूषण और वस्त्र धारण किये हुए अत्यंत भयानक दिखा रही थी
इसके बाद उस देवी ने माता पार्वती कि आज्ञा से देवताओं और ऋषि मुनियो को कष्ट देने वाले उस ब्रम्ह राक्षश दारुक का वध किया। परन्तु उनके क्रोध कि अग्नि शांति न हुई। उनके क्रोध कि अग्नि से सारा लोक जलने लगा।तब उनके क्रोध को शांति करने के लिए भगवान शिव ने शमशान में छोटे बालक का रूप धारण करके छोटे बच्चे के सामान रोने लगे।
माँ तो आखिर माँ ठहरी ज़ब उनकी नजर उस छोटे बालक पर नजर पड़ी तो मोहवश तथा भगवान कि माया से मोहित देवी ने बालक को गोद में उठा लिया उसे चुप कराने के उद्देश्य से अपने स्तनों का दूध पिलाने लगी। तब बालक रूपी शिव जी ने दूध के साथ उनके क्रोध का भी पान कर लिया। उनके उस क्रोध से आठ मूर्तियां हुई जो क्षेत्रपाल कहलाई।
इस प्रकार बालक रूपी शिव ने ज़ब देवी का क्रोध पी लिया तो देवी मूर्क्षित हो गई। तब उस देवी को होश में लाने के लिए भगवान शिव जी ने तांडव नृत्य किया। सांयकाल के समय सभी भूतों और प्रेतों और प्रेतों के सहित हाथ में त्रिशूल लेकर शिव शम्भू ने तांडव नृत्य किया। भगवान शिव के कंठ पर्यंत नृत्य रूपी अमृत का पान करके वह देवी भी नाचने लगी।
इसलिए उन्हें योगिनि कहा गया. उस समय ब्रम्हा, विष्णु, समेत सभी देवताओं ने देवी काली और माता पार्वती की स्तुति की तथा प्रणाम किया।
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Bhut sunder sir
जवाब देंहटाएंEk saval h please answer dijiye ga
Lakshman ki maa kis Desh ki thi